Wednesday, July 25, 2012

कारगिल विजय :: भारतीय सेना के अदम्य साहस, संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक

26 जुलाई - कारगिल विजय की 13 वीं वर्षगांठ पर विशेष 

 

कारगिल युद्ध आजाद भारत के इतिहास में छद्म वेश में लड़ा जाने वाला पहला सीमाई युद्ध था साथ ही यह एक ऐसा युद्ध था जो भारतीय सशस्त्र बलों के इतिहास में सबसे अधिक वाले ऊंचाई वाले युद्धक्षेत्र में लड़ा और जीता गया । कारगिल के जिस इलाके में युद्ध छेड़ा गया था वहां का तापमान -15 डिग्री था, हड्डियों तक को जमा देने वाली कठोर ठंड में भारत के जवानों ने शानदार लड़ाई लड़ी । भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस, संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत अपना लोहा मनवाया कि वे हर परिस्थिति में युद्ध करने और देश की रक्षा करने में सक्षम है । 74 दिनों तक चलने वाला यह युद्ध अपने आप में एक जटिल युद्ध था जिसे पाकिस्तान के प्रशिक्षित सैनिक घुसपैठियों के वेश में लड़ रहे थे । घुसपैठियों द्वारा नियंत्रण रेखा पर 150 किलोमीटर की भारतीय सीमा के साथ साथ 16000-18000 फीट की उंचाई पर पहुंचकर नीचे श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर गोलीबारी की जा रही थी । इसे पाकिस्तान द्वारा छेड़ा गया चौथा युद्ध कहना उचित होगा ।

अप्रैल 1999 में तात्कालीन केन्द्र सरकार के 1 वोट से संसद में विश्वास मत हार जाने के बाद देश के सामने असमय मध्यावधि चुनाव में जाने का रास्ता खुल चुका था । ऐसे समय में मई 1999 में पाकिस्तान की ओर से कारगिल क्षेत्र में हो रही भारी घुसपैठ और भारतीय इलाकों पर कब्जा जमाने की हकीकत सामने आई । कार्यकारी सरकार ने इस हमले से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई । तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने युद्ध के दौरान जबरदस्त आत्मविश्वास और उत्कृष्ठ नेतृत्व का परिचय दिया । भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के नापाक इरादों को नेतस्नाबूद के लिए आपरेशन विजय शुरु किया गया ।
पाकिस्तान द्वारा किया गया कारगिल हमला अप्रत्याशित था प्रत्येक वर्ष ठंड के मौसम में अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया के तहत अत्यधिक कठोर ठंड वाले इलाकों में बनी चौकियों को खाली करने की परम्परा दोनों ही देशों की ओर से काफी लम्बे समय से चली आ रही थी, इस दौरान अपवादस्वरुप गश्त और हवाई निरीक्षण ही हुआ करता था मगर 1999 में पाकिस्तानी सेना ने इस सामान्य प्रक्रिया को ही हमले के लिए सुनहरा अवसर माना, पाक सेना कुटिल चाल चलते हुए तय समय से काफी पहले ही अपनी चौकियों पर आ गई और खाली पड़ी भारतीय चौकियों पर भी कब्जा करना शुरु कर दिया ।
इस कठिन लड़ाई में दुश्मन जहां हजारों फीट ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर मोर्चा जमाकर बैठता था जिसकी वजह से नीचे तैनात भारतीय सैनिक उसके लिए आसान निशाना होते थे इस प्रकार पाकिस्तानी घुसपैठियों की स्थिति मजबूत थी । भारतीय सैनिकों ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में यह युद्ध लड़ा था । भारतीय सेना ने यह दिखा दिया कि चाहे जितनी भी कठिन और विपरीत परिस्थितियां हो, दुश्मन उसके सामने टिक नही सकता ।
आजाद भारत पहली बार ऐसा हुआ था जब किसी सरकार ने शहीदों का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के लिए पार्थिव शरीर को उनके गांव या कस्बे तक ले जाने की अनुमति दी थी । यह एक सराहनीय कदम था अटल सरकार के इस कदम से देशभर के लोगों में देशभक्ति की जबदस्त भावना जागृत हुई क्योंकि कारगिल युद्ध में शहीद जवान देश के अलग-अलग हिस्सों और राज्यों से ताल्लुक रखते थे किसी जवान के पार्थिव शरीर के गांव या कस्बे में पहुंचने पर वहां के लोगों के मन में देशभक्ति की भावना मजबूत होती थी । जिन रास्तों से जवानों का पार्थिव शरीर ले जाया गया उन रास्तों में भी देश की जनता सड़कों किनारे खड़े होकर सलामी दी ।
कारगिल विजय के तीन महिने बाद आए लोकसभा चुनाव परिणाम में एनडीए को मिले बहुमत के पीछे के कारणों में से एक कारण कारगिल युद्ध में अटल सरकार की सशक्त भूमिका भी रही है । कारगिल युद्ध की विजय के 11 वर्ष पूरे हो रहे हैं । इस युद्ध में मिली शिकस्त के बाद पाकिस्तान ने दोबारा इस तरह का दु:साहस करने की हिमाकत नही की । कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को मिला करारा जवाब उसे लम्बे समय तक याद रहेगा इस युद्ध से ही अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में एक हमलावर देश के रुप में पाकिस्तान की पहचान बनी है । कारगिल विजय को भारतीय सेना के शानदार प्रदर्शन के साथ साथ भारत के स्वाभिमान और मनोबल बढ़ाने वाली विजय के रुप में भी याद किया जाता है ।

Thursday, April 5, 2012

भाजपा का 32 सालों का सफर :: 6 अप्रैल भाजपा के स्थापना दिवस पर विशेष

लेखक - राजेन्द्र पाध्ये
32 साल पहले 6 अप्रैल 1980 को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में देश भर से आये 3500 प्रतिनिधियों की बीच भाजपा के गठन की घोषणा की गई जिसमें अनुभवी नेता अटल बिहारी वाजपेयी को इसका प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया ।
आज भाजपा के तीन दशक पूरे हो चुके हैं इन तीन दशको में इस पार्टी ने उतार चढ़ाव से भरा एक लम्बा सफर तय किया है । 1980 में अस्तित्व में आने के बाद ही इसके नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह नया दल अपनी विरासत जनसंघ की ओर नही लौटकर एक नई शुरुआत करेगा और राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत गैर कांग्रेसी विकल्प बनकर उभरने की दिशा में काम करेगा ।
भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी मार्गदर्शक संस्था मानकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को अपनी कार्यशैली का हिस्सा बनाया । पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद के सिद्धांत को पार्टी ने अपनी विचारधारा में शामिल कर अंत्योदय अर्थात अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जाहिर की ।
1984 में भाजपा ने पहली बार आम चुनावों का सामना किया जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या की सहानूभूति लहर पर सवार होने के कारण कांग्रेस ने 401 सीटें हासिल की जबकि भाजपा को मात्र 2 सीटे ही मिलीं जबकि इसके ठीक 1 वर्ष पहले ही 1983 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में उसने 224 में से 18 सीटें जीत कर दक्षिण भारत में अपनी उपस्थिति का एहसास करा दिया था । बहरहाल 1984 में मात्र 2 सीटें मिलने के बाद भी पार्टी के कर्णधार नेताओं ने हताशा और निराशा को किनारे कर चरैवेति-चरैवेति के मूल मंत्र के साथ अगले पड़ाव की ओर रुख किया । भाजपा की कमान 1986 में अटल जी से लाल कृष्ण आडवानी के हाथों में आई और 1990 तक लालकृष्ण आडवानी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में कार्य किया। 1986 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही भाजपा में दूसरी पंक्ति के नेता के रुप में प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अरुण जेटली, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, उमा भारती जैसे नेता अपनी संगठन क्षमता के चलते पार्टी और जनता के बीच अपनी अलग पहचान बनाने लगे थे । इसी दौरान राजीव गांधी सरकार के बोर्फोस दलाली कांड के उजागर होने से पूरे देश में सरकार विरोधी लहर बनाने में भाजपा ने कोई कसर नही छोड़ी । कागे्रस सरकार बोर्फोस दलाली कांड को दबाना चाहती थी लेकिन फिर भी पुरजोर तरीके से उठाने के कारण यह पूरे देश में जन-जन की जुबान पर चढ़ गया । इसके अलावा राजीव गांधी सरकार द्वारा शाहबानो प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय को बौना साबित करके अल्पसंख्यकवाद के सामने घुटने टेकने का जो काम किया इसे भी प्रमुख मुद्दा बनाकर भाजपा ने पूरे देश में इस सरकार के खिलाफ जबरदस्त मुहिम छेड़ी । बोर्फोस दलाली कांड, शाहबानो प्रकरण, श्रीलंका में भारतीय सेना का गैरजरुरी हस्तक्षेप, रामजन्मभूमि की उपेक्षा जैसी गंभीर ऐतिहासिक गलतियां कर चुकी राजीव सरकार को सत्ताच्यूत करने के लिए भाजपा ने 1989 में जनता दल के साथ गठजोड़ किया क्योंकि दोनों ही दलों का साझा उद्देश्य कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करना था ।
1989 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतीं जो कि 1984 की 2 सीटों की तुलना में एक सीधी उछाल थी । भाजपा ने अपने गठन के एक दशक के भीतर ही देश की राजनीति में एक निर्णायक दल के रुप में उपस्थिति दिखाई ।
1990 के दशक की शुरुआत में भाजपा के समर्थन से चल रही वीपी सिंह सरकार अक्टूबर 1990 में उस समय खतरे में आ गई जब प्रधानमंत्री के दल से ताल्लुक रखने वाले एक मुख्यमंत्री ने रामरथ यात्रा का नेतृत्व कर रहे लाल कृष्ण आडवानी को रोकने का दुस्साहस किया यही कदम वीपी सिंह सरकार के पतन का कारण बना । ऐतिहासिक अयोध्या आंदोलन की एक कड़ी के रुप में आयोजित रामरथ यात्रा के दौरान भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता और व्यापक जनसमर्थन से वीपी सिंह सरकार डर गई थी वह किसी भी स्थिति में भाजपा को कांग्रेस का विकल्प बनने से रोकना चाहती थी । रामभक्ति को लोकशक्ति में बदलने की लालकृष्ण आडवानी की मुहिम अनोखी थी । वे रामजन्मभूमि से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को चरणबद्ध तरीके से जनता के बीच रखकर भगवान राम और विदेशी आक्रान्ता बाबर की समानता बताने वाले विरोधियों पर कठोर टिप्पणी करके भारतीय जनमानस को झकझोरते थे । आडवानी जी गुजरात के सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार की तर्ज पर रामजन्मभूमि का भी पुनरुद्धार चाहते थे । इस मामले में भाजपा के स्थानीय नेता भी गली मोहल्लों में इस बात की चर्चा अवश्य करते थे कि जब मुस्लिमों का मक्का में पूर्ण इस्लामिक वातावरण है और ईसाइयों का वेटिकन सिटी में ईसाइयत का पूर्ण अधिकार है तो भारत के करोड़ों हिन्दुओं के मन में जिन भगवान राम के प्रति अगाध श्रद्धा है उनकी अयोध्या में राम लला की स्थापना क्यों नही हो सकती ?
भाजपा के वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापसी के बाद कुछ दिनों तक कांगे्रस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री रहे कांग्रेस के समर्थन वापसी के चलते चंद्रशेखर सरकार की विदाई हुई। इसके बाद 1991 में लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई । इससे पूर्व मार्च 1990 में भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश विधानसभा में जीत हासिल कर ली थी। 1991 में हुए लोकसभा के पहले चरण के चुनाव के तुरंत बाद ही राजीव गांधी की हत्या हो गई इस जघन्य कांड की वजह से भारतीय राजनीति ने करवट ली और शेष दो चरणों का चुनाव जून 1991 तक के लिए स्थगित कर दिया गया । इस स्थगन की वजह से कांगे्रस के पक्ष में सहानुभूति लहर पैदा होने में मदद मिली लेकिन सहानुभूति लहर के बावजूद कांग्रेस को सरकार बनाने जितना भी बहुमत नही मिल सका आवश्यक 273 सीटों से वह काफी पीछे रही कांग्रेस को 232 सीटें ही मिली । इनमें से दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव जो कि राजीव की हत्या के बाद हुए थे, में ही उसने ज्यादा सीटें जीती थी जबकि भाजपा को 1989 की 89 सीटों के मुकाबले 1991 में 121 सीटें मिली, यह भाजपा के बेहतर होते प्रदर्शन की निशानी था । 1991 के लोकसभा चुनाव के बाद लालकृष्ण आडवानी नेता प्रतिपक्ष बने ।
1991 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली जीत ने उसका उत्साह को बढ़ाने का काम किया देश के सबसे बड़े राज्य में भाजपा की सरकार बनना एक सुखद अनुभूति रही, कल्याण सिंह उत्तरप्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री बने । 1991 में ही लाल कृष्ण आडवानी के स्थान पर डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में भाजपा की कमान संभाली । राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कश्मीर के आतंकवादियों और अलगाववादियों को चुनौैती देते हुए कन्याकुमारी से कश्मीर तक 47 दिनों की एकता यात्रा करके 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराया और पूरे देश में कश्मीर में फैले आतंकवाद को लेकर जनजागरण अभियान चलाया ।
6 दिसंबर 1992 को को अयोध्या में हुई मस्जिद ढांचा विध्वंस की दुखद घटना के चलते उत्तरप्रदेश सरकार जाती रही वहीं मध्यप्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई भाजपा सरकारों को बेवजह बर्खास्त किया गया जबकि इन सरकारों का अयोध्या की घटना से कोई लेना देना ही नही था । 1993 के चुनावों में भाजपा दोबारा इन राज्यों में वापसी नही कर सकी लेकिन दिल्ली में मदनलाल खुराना और राजस्थान में भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व में हुई जीत ने भाजपा को राहत दिलाई । 1993 में लाल कृष्ण आडवानी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली और 1995 में दोबारा फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये और नबंवर 1995 को मुंबई अधिवेशन में देश भर से आये भाजपा के 1 लाख प्रतिनिधियो के बीच लालकृष्ण आडवानी ने अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया । मुंबई अधिवेशन से नारा निकला अगली बारी - अटल बिहारी ।
सत्तासीन नरसिम्हाराव सरकार ने 1996 में देश के धुरंधर राजनीतिज्ञों को हाशिये में डालने के लिए हवाला कांड का सहारा लिया जिसमें लालकृष्ण आडवानी, मदनलाल खुराना सहित कुछ भाजपा नेताओं के नाम भी रहे । भाजपा अध्यक्ष आडवानी ने हवाला कांड में आरोप लगते ही तत्काल लोकसभा से त्यागपत्र देकर यह घोषणा की कि जब तक न्यायालय मुझे मिथ्या आरोपों से मुक्त नही कर देता तब तक मैं लोकसभा चुनाव नही लड़ूंगा । लालकृष्ण आडवानी की उक्त घोषणा से जहां भाजपा के सारे केन्द्रीय नेता भौंचक रह गये वहीं देश भर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने गर्व की अनुभूति की क्योंकि राजनीतिक शुचिता का यह प्रत्यक्ष उदाहरण था । आडवानी के इस कदम से उनका राजनीतिक कैरियर भी समाप्त हो सकता था लेकिन उन्होने इसकी परवाह नही की । दिल्ली के मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने भी आडवानी के पदचिन्हों पर चलकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया । 16 महिने बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने अप्रैल 1997 में आडवानी को हवाला कांड के सभी आरोपों को मिथ्या करार देते हुए से दोषमुक्त कर दिया ।
मई 1996 को हुए लोकसभा चुनावों में त्रिशंकु संसद का गठन हुआ । राष्ट्रपति ने सबसे अधिक सीटें जीतकर आने वाले दल के रुप में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने आमंत्रित किया और 14 दिनों के भीतर विश्वास मत हासिल करने को कहा । 16 मई 1996 को वह ऐतिहासिक दिन आया जब पहली बार गैर कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली । भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए सारे अवसरवादी एक जुट हो गए । भाजपा ने भी अपनी सरकार बचाने के लिए किसी अनैतिक कदम का सहारा नही लिया और तेरह दिनों के बाद अटल जी ने त्यागपत्र दे दिया सदन में विश्वास मत पर हुई बहस में अटल जी द्वारा दिया गया भाषण उनके राजनीतिक कैरियर का सर्वश्रेष्ठ भाषण था बहस को समाप्त करते हुए अटल जी ने कहा था कि हम वापस आयेंगे । इस्तीफा देने के वाजपेयी के इस कदम ने उनकी लोकप्रियता को शिखर पर पहुंचा दिया और एक राजनीतिक नायक के रुप में भारत की जनता के मन में उन्होने जगह बना ली ।
इसके बाद प्रधानमंत्री बने एचडी देवेगौड़ा और इन्द्रकुमार गुजराल की सरकारें अपने मंत्रियों के आपसी झगड़ों और छीना झपटी में ही उलझी रही ।
1997 में भारत की स्वतंत्रता की पचासवीं वर्षगांठ (स्वर्ण जयंती) को भाजपा अलग तरह से मनाना चाहती थी । स्वाधीनता आंदोलन के शहीदों और नायकों को उनके संबद्ध स्थल पर जाकर श्रद्धांजलि देने का निर्णय लेते हुए भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवानी के नेतृत्व में स्वर्ण जयंती रथ यात्रा निकालने की योजना बनाई । स्वर्णजयंती रथ यात्रा 18 मई 1997 को मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान से निकलकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा होकर 15 जुलाई 1997 को दिल्ली में समाप्त हुई । स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का एक पहलू यह भी था कि भारतीय जनता पार्टी और लालकृष्ण आडवानी का नाम भी जन जन के बीच पहुंच रहा था । देश में राजनीतिक अस्थिरता के माहौल में निकाली गई यह स्वर्ण जयंती रथ यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में भी सहायक सिद्ध हो रही थी ।
नवंबर 1997 में कांग्रेस ने ये नौटंकी करते हुए गुजराल सरकार ने समर्थन वापस ले लिया कि राजीव गांधी की हत्या के षडय़ंत्र में शामिल दल डीएमके के मंत्रियों को निकाल दे हालंाकि बाद में डीएमके से कांग्रेस को कोई एलर्जी नही रही और मनमोहन सिंह सरकार में उसके सांसदों को मंत्री पद से नवाजा गया । कांग्रेस की समर्थन वापसी से देश में मध्यावधि चुनाव का मार्ग प्रशस्त हुआ । भाजपा अटल जी की तेरह दिन की सरकार जाने के बाद से ही चुनावी तैयारी में लग गई थी दूसरी तरफ 1996 से 1998 में दो साल में तीन प्रधानमंत्री देखने वाली देश की जनता में राजनीतिक अस्थिरता दूर करने का मन बना लिया था ।
मार्च 1998 में लोकसभा के मध्यावधि चुनावों में भाजपा ने योग्य प्रधानमंत्री-स्थिर सरकार का नारा देकर अटल जी के करिश्मे और लहर को वोटों में तब्दील करने में कोई कसर नही छोड़ी जिसके परिणामस्वरुप भाजपा ने 384 में से 182 सीटें जीतकर अपने 1996 के प्रदर्शन(161 सीटें)में सुधार किया । भाजपा का सबसे ज्यादा सीटें जीतकर आने वाला दल होने के नाते भाजपानीत सरकार बनना तय था भाजपा को मिलाकर 16 दलों का गठबंधन तैयार हुआ जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नाम दिया गया । इसी गठबंधन ने अटल बिहारी वाजपेयी को अपना नेता चुना । 1980 में भाजपा की स्थापना के समय कांग्रेस का सार्थक विकल्प बनने का जो लक्ष्य रखा था वह मार्च 1998 में अटल जी के प्रधानमंत्री के रुप में शपथ लेने से सार्थक हुआ । गठबंधन के साझा कार्यक्रम के तहत भाजपा ने अपने तीनों मुद्दों रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण, समान नागरिक संहिता का निर्माण और कश्मीर संबंधित अनुच्छेद 370 को तब तक के लिए स्थगित कर दिया जब तक उसे स्वयं के बल पर पूर्ण बहुमत हासिल नही हो जाता ।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवानी अब देश के गृहमंत्री बन चुके थे और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में उनका कार्यकाल भी समाप्त हो चुका था इसलिए अप्रैल 1998 में भाजपा के अनुभवी नेता कुशाभाऊ ठाकरे जो अपनी नि:स्वार्थता, सादगी और संगठनक्षमता के लिए जाने जाते थे को सर्वसम्मति से लालकृष्ण आडवानी के स्थान पर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया ।
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाने का उल्लेख किया था अपनी इस घोषणा के पालन करने अटल जी ने शपथ लेने के साथ ही काम शुरु कर दिया और दो महिने के भीतर 11 मई 1998 को ही पोखरण परमाणु परीक्षण करके यह दिखा दिया कि भाजपा में कथनी को करनी में बदलने का साहस है । इस परमाणु विस्फोट से देश को शक्तिशाली और स्वाभिमानी होने का एहसास हुआ । अटलजी के नेतृत्व में राजग सरकार ने देश में अधोसंरचना के विकास पर विशेष बल दिया ग्रामीण सड़कों व राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, संचार, सूचना प्रौद्योगिकी सहित ऊर्जा क्षेत्र में विशेष कार्य किये । फरवरी 1999 को पड़ोसी देश पाकिस्तान से कड़वे रिश्तों को ठीक करने की पहल करते हुए लाहौर बस यात्रा की । लेकिन पाकिस्तान ने आदतन भारत विरोधी रवैया अपनाते हुए कारगिल में घुसपैठ की जिसका करारा जबाव देते हुए आपरेशन विजय चलाकर पाकिस्तान के नापाक ईरादों को नेस्तनाबूद कर दिया । वास्तव में कारगिल हमला एक युद्ध ही था जो कि पाकिस्तान के प्रशिक्षित सैनिक घुसपैठियों के वेश में लड़ रहे थे ।
1998 में अटल जी के नेतृत्व में बनी राजग सरकार 13 महिने चलने के बाद अप्रैल 1999 कांगे्रस की वजह से मात्र एक वोट से गिर गई । देश एक बार फिर मध्यावधि चुनाव की ओर मुड़ गया । इस बार राजग का विस्तार हुआ और चौबीस पार्टियां इसमें शामिल हुई । अटल जी की सरकार के एक वोट से गिर जाने का दर्द जन जन के मन में था, जनता के बीच जाकर की गई भाजपा की मार्मिक अपील ने जबरदस्त काम किया और सितम्बर-अक्टूबर 1999 में संपन्न लोकसभा चुनाव में 545 सदस्यों के सदन में राजग ने 306 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया इसमें भाजपा ने 182 सीटें हासिल की थी । 13 अक्टूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पुन: प्रधानमंत्री पद की शपथ ली । अपने इस कार्यकाल में भाजपानीत केन्द्र सरकार ने पिछली अवधि में बनाई गई योजनाओं को मूर्त रुप देने का काम किया । वर्ष 2000-01 में भाजपानीत केन्द्र सरकार ने ऐतिहासिक काम करते हुए छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तरांचल नामक तीन छोटे राज्यों का गठन किया । दिसंबर 2003 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को मिली शानदार विजय से उत्साहित उसके रणनीतिकारों ने सितम्बर 2004 के नियत समय से पूर्व ही लोकसभा चुनाव करवाने के लिए पर जोर दिया, आत्मविश्वास से सराबोर भाजपा ने छह महिने पहले फरवरी 2004 में ही लोकसभा भंग कर दी । चुनाव के प्रचार की कमान लालकृष्ण आडवानी ने संभाली । राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू से बातचीत कर लालकृष्ण आडवानी ने एक बार पुन: यात्रा निकालकर जनता के बीच जाने का निर्णय लिया इस यात्रा को भारत उदय यात्रा का नाम दिया गया । 2004 के चौहदवीं लोकसभा की मतगणना के परिणाम भाजपा के लिए चौंकाने वाले थे, भाजपा के नीचे से ऊपर तक के सारे नेता स्तब्ध थे जिसकी उन्होने कभी कल्पना नही की थी वो परिणाम सामने आया । 1999 में मिली राजग को मिली 306 सीटों के मुकाबले 2004 में 186 सीटें ही मिली हालाकि कांग्रेस गठबंधन को भी 216 सीटें ही मिली थी लेकिन वामपंथी दलों के 62 सांसदों का समर्थन मिलने से वह सरकार बनाने की स्थिति में आ गई । प्रधानमंत्री के रुप मे सोनिया गांधी का नाम सामने आने पर भाजपा के नेताओं ने कठोर प्रतिक्रिया दी यहां पर भाजपा का विरोध किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नही था बल्कि भारत में उच्च संवैधानिक पदों पर विदेशी मूल के व्यक्ति का आसीन होने विरोध था यह विरोध सैद्धांतिक था । बाद में संविधानेत्तर व्यवस्था करके सोनिया गांधी का राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बनकर प्रधानमंत्री के पदधारी व्यक्ति को सलाह देने के कार्य को भी भाजपा ने अनुचित ठहराया ।
2004 लोकसभा चुनाव में मिली हार को पार्टी ने चुनौती के रुप में लिया और हार की समीक्षा करके नये सिरे से शुरुआत करने की ठानी । 2004 में लालकृष्ण आडवानी को वेंकैया नायडू की जगह भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय चुना गया । 2005 में राजनाथ सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने । 2008 के लोकसभा चुनाव में लालकृष्ण आडवानी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाकर चुनाव लड़ा गया लेकिन भाजपा का दुर्भाग्य रहा कि वो फिर सत्ता में आने से चूक गई । राष्ट्रीय राजनीति में संकटों से जूझ रही पार्टी का नेतृत्व 2009 में नागपुर के नितिन गडकरी को सौंपा गया । सेवा और विकास में विश्वास रखने वाले नितिन गडकरी क्रांतिकारी कार्यों के लिए जाने जाते हैं, महाराष्ट्र सरकार में लोक निर्माण मंत्री रहते मुम्बई-पुणे एक्सप्रेस वे और 55 फ्लाई ओवर बनाकर मुम्बई को एशिया के अन्य प्रमुख शहरों के मुकाबले में खड़ा करने की उपलब्धि उनके नाम है । वाजपेयी सरकार में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के क्रियान्वयन करते हुए देश भर के ग्रामीण अंचलों में सड़कों का जाल बिछाने मेें नितिन गडकरी ने अहम भूमिका निभाई है । आज नितिन गडकरी के सामने देश में भाजपा को फिर से मजबूत स्थिति में खड़ा करने की चुनौती है, आज भारतीय जनता पार्टी के कांग्रेसीकरण होने के आरोपों के बीच उसे अपनी एक अलग राजनीतिक दल के रुप में बनी पहचान को कायम रखने की भी चुनौती का भी सामना करना है ।
1980 में अटल जी राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और 2010 से नितिन गड़करी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नितिन गड़करी तक भाजपा का 30 सालों का सफर उतार चढ़ावों से भरा रहा है । आज भारतीय राजनीति पर नजर डालें तो एक बात स्पष्ट होकर सामने आती है कि भाजपा के बिना देश के राजनीतिक परिदृश्य की कल्पना नही की जा सकती, बिना भाजपा का जिक्र किये भारतीय राजनीति की कोई परिचर्चा पूरी नही हो सकती। भाजपा के नीति निर्धारकों ने इसे साधारण राजनीतिक दल के रुप में नही बल्कि एक वैचारिक संगठन के रुप में विकसित करने का प्रयास किया । भाजपा के विचारकों का हमेशा से यह मत रहा है कि सत्ता के सहारे से परिवर्तन नही लाया जा सकता बल्कि सत्ता परिवर्तन लाने का एक साधन जरुर हो सकती है । सत्ता को साध्य नही साधन मानने की भाजपा की नीति के चलते ही इसके गठन के पहले दशक में जनभावनाएं तेजी के साथ इसके साथ जुड़ी । दूसरे दशक में भाजपा ने एनडीए जैसा विशाल गठबंधन तैयार कर देश में गठबंधन राजनीति के नए युग की शुरुआत की । भाजपानीत एनडीए ने अपने दूसरे दशक में देश की बागडोर संभाल कर जनता को सुखद एहसास कराया । छह साल तक केन्द्र में भाजपानीत एनडीए ने शासन किया । तीसरे दशक में केन्द्र की सत्ता भले ही भाजपा के हाथों से निकल गई लेकिन देश के छह बड़े राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गोवा में स्वयं के बलबूते राज कर रही है और तीन राज्यों पंजाब, बिहार, झारखंड की सरकारें भाजपा के सहारे चल रही है । अपने 30 बसंत पार करने के बीच भाजपा के सुखद दिनों में से एक दिन वह भी था जब उसने दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में स्वयं के बल पर सत्ता हासिल कर वहां कांग्रेस और ब्लैकमेलर क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व तोडऩे में सफलता पाई ।
आज भाजपा का नेतृत्व नई पीढ़ी के हाथों में है, अटल, आडवानी और मुरली मनोहर मार्गदर्शक की भूमिका में आ चुके हैं । नई पीढी के नेता भाजपा को संवारने के लिए कठोर मेहनत कर रहे हैं । सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा के साथ एकात्म मानववाद के सिद्धांतों पर मजबूती के साथ खड़े रहते हुए उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, केरल, तमिलनाडू जैसे राज्यों में पार्टी का आधार मजबूत करने से ही पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की संभावना बढ़ेगी । भाजपा की 32 सालों की संघर्षशील पृष्ठभूमि के चलते ये काम नामुमकिन नही है । राष्ट्रीय नेतृत्व में दिखाई देने वाली दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प से राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के अच्छे दिन फिर से लौटेंगे । आज बेलगाम महंगाई, बेतहाशा भ्रष्टाचार और विदेशों में जमा कालेधन को लेकर भाजपा का संघर्ष जनमानस में खास प्रभाव छोड़ रहा है, संसद से लेकर ग्राम स्तर तक भाजपा का जनजागरण अभियान चल रहा है । भाजपा के कठोर कदमों के कारण ही सरकार को सदन में झुकना पड़ा और 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में जेपीसी गठन की मांग माननी पड़ी, केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति के मामले में भी भाजपा के अभिमत की अवहेलना करने के बाद केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री को सुप्रीम कोर्ट से फटकार मिलने से भाजपा की सतर्क विपक्ष की भूमिका उजागर हुई है । भाजपा की जड़ें राष्ट्रीय राजनीति में बहुत मजबूती से जम चुकी है ।

राजेन्द्र पाध्ये (लेखक भारतीय जनता युवा मोर्चा के छत्तीसगढ़ प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हैं, पार्टी के मीडिया सेल से जुड़े हुए हैं एवं दुर्ग जिला भाजपा के मीडिया प्रभारी रह चुके है) सम्पर्क :- मोबाइल :: 098934-31588

Friday, April 8, 2011

भ्रष्टाचार और महंगाई पर अंकुश लगाना आज देश की सबसे बड़ी जरुरत है

भारतीय जनता युवा मोर्चा ने केन्द्र की कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार-घोटाले, महंगाई और कालाधन वापसी पर उदासीनता को लेकर साजा विधानसभा की थानखम्हरिया नगर पंचायत में पैदल मार्च कर विरोध प्रदर्शन किया । इस दौरान साजा के आंदोलन प्रभारी व भाजयुमो प्रदेश कार्यसमिति सदस्य राजेन्द्र पाध्ये, जिला भाजपा उपाध्यक्ष अजय तिवारी, एनजीओ प्रकोष्ठ जिला संयोजक सुरेन्द्र कौशिक, थानखम्हरिया नगर पंचायत अध्यक्ष ओमप्रकाश जोशी, भाजयुमो विशेष आमंत्रित सदस्य विरेन्द्र जोशी और साजा भाजयुमो मंडल अध्यक्ष संतोष साहू विशेष रुप से उपस्थित थे । नंगाडों की आवाज और कांग्रेस विरोधी नारों के साथ एक घंटे तक भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने नगर भर में पैदल मार्च किया । पैदल मार्च का समापन स्वामी विवेकानंद टाऊन हॉल में हुआ जहां परिचर्चा आयोजित की गई ।
परिचर्चा को संबोधित करते हुए साजा के आंदोलन प्रभारी व प्रदेश कार्यसमिति सदस्य राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि भ्रष्टाचार और महंगाई केन्द्र की कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है । भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण पूरा देश खोखला हो रहा है । आज अन्ना हजारे जैसे समाजसेवी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है । पूरा देश से सिर्फ एक ही आवाज आ रही है- जाग उठा है हिन्दुस्तान, नही चलेगा भ्रष्टाचार । भ्रष्टाचार और महंगाई पर अंकुश लगाना आज देश की सबसे बड़ी जरुरत है । भाजपा ने संसद के अदंर और बाहर लगातार सचेत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए सरकार को हर मुददे पर सतर्क किया है भाजपा ने सदन में अवरोध बनाकर कांग्रेस सरकार झुकाया और 1 लाख 75 हजार करोड़ के 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में जेपीसी का गठन करने के लिए मजबूर कर दिया । इससे पहले केन्द्र सरकार ने एक भ्रष्ट अधिकारी पी.जे. थामस को सुषमा स्वराज के विरोध के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक संवैधानिक संस्था सीवीसी का मुखिया बना दिया, भाजपा की आपत्ति को नही मानने का दुष्परिणाम कांग्रेस सरकार को भोगना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सरकार के मुंह पर करारा तमाचा जड़कर सीवीसी की नियुक्ति को ही अवैध करार देकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है ।

जिला भाजपा उपाध्यक्ष अजय तिवारी ने कहा कि भाजपा ने हमेशा जनहित के मुद्दों पर संघर्ष किया है और पार्टी आज गांव गांव में जाकर भ्रष्टाचार-महंगाई-कालाधन को लेकर जनजागरण की अलख जगा रही है । महंगाई का आलम यह है कि आम आदमी की जीना दूभर हो गया है । भ्रष्टाचार आज चरमसीमा में है और मनमोहन सिंह अपनी बेचारगी जताकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं । वास्तव में देश को किसी मासूम चेहरे वाले निष्क्रीय प्रधानमंत्री की नही बल्कि सबल और साहसिक निर्णय लेने वाले सक्षम प्रधानमंत्री की आवश्यकता है । जो प्रधानमंत्री महंगाई और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में अपनी लाचारी दिखाये उसे पद में बने रहने का कोई हक नही है ।
भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ जिला संयोजक सुरेन्द्र कौशिक ने कहा कि कालेधन को लेकर कांग्रेस सरकार की निष्क्रीयता आश्चर्यजनक है, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। विदेशो में जमा कालाधन राष्ट्रीय सम्पत्ति है कालाधन वापस पाना देश की जनता का हक है । इसके लिए भाजपा और युवा मोर्र्चा का संघर्ष जारी रहेगा ।
थानखम्हरिया नगर पंचायत अध्यक्ष ओमप्रकाश जोशी ने कहा कि महंगाई कांग्रेस की देन है जबकि कांग्रेस नेता महंगाई के लिए राज्य सरकार को दोषी बताकर भ्रम फैला रहे हैं जबकि यह महंगाई सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नही है बल्कि दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में भी उतनी ही है । महंगाई पर नियंत्रण केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर निर्भर है जिसमें केन्द्र सरकार पूरी तरह से विफल हो चुकी है ।

Friday, March 4, 2011

देश के सत्ताधीशों को मनमानी करने का हक नही है

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीवीसी के पद पर पी जे थामस की नियुक्ति को अवैध घोषित करने से केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार की गतिविधियों पर प्रश्न चिन्ह लग गया है, लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिन पर गौर करने से ये बात साफ होती जा रही है कि मनमोहन सरकार की गतिविधियां भ्रष्टाचार को हतोत्साहित करने की बजाय पोषित करने वाली है । सीवीसी पद के लिए न्यायालयीन प्रकरण के दौरान भी केन्द्र सरकार ने अपने अर्टानी जनरल के माध्यम से शपथपत्र देकर न केवल नियुक्ति को जायज ठहराया बल्कि पी जे थामस को क्लीन चिट देते हुए उसे निष्कलंक और उत्कृष्ठ अधिकारी तक कहने से सरकार पीछे नही हटी ।
बहरहाल इस मामले में अब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय से बनी परिस्थितियों के बाद केन्द्र सरकार पूरी तरह से कटघरे में खड़ी हो गई है । केन्द्रीय सर्तकर्ता आयुक्त के पद की नियुक्ति हेतु बनी चयन समिति में सदस्य के रुप में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री पी चिदम्बरम और नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज शामिल थे । चयन के लिए हो रही बैठक के दौरान पी जे थामस के नाम पर नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज द्वारा आपत्ति के साथ ही विरोध भी दर्ज कराने के बावजूद मनमोहन सिंह और पी चिदम्बरम ने अपनी अपनी सहमति के आधार पर बहुमत का हवाला देते हुए नियुक्ति पर मुहर लगाई, आपत्ति और विरोध को दरकिनार करके नियुक्ति किये जाने से साफ होता है कि सहमति देने वाले दोनों ही सदस्य पी जे थामस को ही सीवीसी बनाने के लिए मानसिक रुप से तैयार होकर बैठक में आए थे ।
भ्रष्टाचार के मामलों की निगरानी के लिए बनाए गए सीवीसी जैसे पद के चयन के लिए बनी समिति में नेता प्रतिपक्ष को भी रखे जाने के पीछे संविधान में छिपी मूल भावना लोकतंत्र को मजबूत करने की ही है और दूसरा पहलू यह भी है कि विपक्ष की सार्थक भूमिका केवल सरकार का विरोध करना ही नही वरन् उसके गलत निर्णयों पर उसे सतर्क करना भी है जिसमें नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने पूरी तरह से अपनी भूमिका का निर्वहन किया लेकिन सरकार में बैठे दोनों ही सदस्यों ने इस विरोध को सकारात्मक रुप में न लेकर सिर्फ विपक्षी दल के नेता का औपचारिक विरोध मानकर बहुमत का हवाला देते हुए दागी व्यक्ति की नियुक्ति करके लोकतंात्रिक व्यवस्था का अपमान ही किया ।
सर्वोच्च न्यायालय में चले पूरे मामले के दौरान तमाम नौकरशाहों का प्रतिनिधित्व करते हुए पी जे थामस पदलोलुपता का एक ज्वलंत उदाहरण भी पेश कर गए । अपने पद पर काबिज रहने के लिए न्यायालय के समक्ष जितने भी प्रपंच कर सकते थे वे करते रहे कभी स्वयं को असंदिग्ध ईमानदार कहते हुए निर्लज्जता के साथ बचाव किया तो कभी देश के दागी सांसदों और विधायकों का हवाला देते हुए स्वयं को सीवीसी के पद के उपयुक्त बताया ।
सीवीसी जैसी देश की सर्वोच्च भ्रष्टाचाररोधी संस्था की गरीमा को समाप्त कर उसे खोखला करने की सत्ताधीशों की हरकत न्यायपालिका को पसंद नही आई और सर्तक न्यायपालिका ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए यह जता दिया कि देश के सत्ताधीशों को मनमानी करने का हक नही है ।

Saturday, November 20, 2010

शिक्षा के बाजारीकरण के विरोध में अभाविप का विराट प्रदर्शन


दुर्ग । शिक्षा के बाजारीकरण के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दुर्ग जिले के कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया । आंदोलन में मुख्य रुप से अभाविप के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रशान्त तिवारी, पूर्व राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य व पूर्व छात्र नेता राजेन्द्र पाध्ये, जिला संयोजक उपकार चंद्राकर, जिला छात्रा प्रमुख मोमिता दास, जिला संगठन मंत्री वरुण यादव, पूर्व जिला संयोजक सुरेन्द्र कौशिक विशेष रुप से उपस्थित थे ।
कड़ी धूप में दोपहर 2 बजे जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय के सामने से छात्रों की रैली रवाना हुई । दुर्ग शहर के मुख्य मार्गों से रैली निकली और जिलाधीश कार्यालय के समक्ष रैली का समापन हुआ । समापन में हुए मंचीय कार्यक्रम में वक्ताओं ने शिक्षा के बाजारीकरण के मुद्दे पर केन्द्र सरकार पर जमकर प्रहार किया ।
उपस्थित छात्रों और नागरिकों को संबोधित करते हुए अभाविप के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रशान्त तिवारी ने कहा कि व्यापारीकरण के चलते शिक्षा की स्थिति दिन प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है । यह आने वाले समय के लिए अच्छा संकेत नही है, इसलिए अभाविप ने देश भर में शिक्षा के बाजारीकरण के विरोध में आवाज उठाने का निर्णय लिया है ।

अभाविप के पूर्व राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि शिक्षा का बाजारीकरण देश की एक बड़ी समस्या बन चुका है, आज शिक्षा माफियाओं के चंगुल में है । गरीब छात्रों से शिक्षा दूर होती जा रही है । निजीकरण के नाम पर शिक्षा का बाजारीकरण किया जा रहा है । शिक्षा के केन्द्र को मंदिर की उपमा दी जाती है लेकिन शिक्षा माफियाओं द्वारा इस मंदिरों को दुकान और विद्यार्थियों को ग्राहक बना दिया गया है । प्रायवेट शिक्षा संस्थान निरंकुश होकर मनमानेपूर्ण ढंग से फीस और अन्य मदों के नाम पर छात्रों से बेतहाशा पैसा वसूल रहे हैं इन निजी शिक्षा संस्थानों के लिए शिक्षा सेवा का नही बल्कि व्यापार का माध्यम बन चुकी है । इंजिनियरिंग और मेडिकल सहित तमाम पाठ्यक्रमों की सीटें इन निजी संस्थानों द्वारा मनमाने दामों पर बेची जा रही है, गरीब और मध्यम वर्ग का प्रतिभावान छात्र आज डाक्टर और इंजिनियर बनना तो दूर की बात है डॉक्टर और इंजिनियर बनने का सपना भी नही देख सकता है । शिक्षा के बाजारीकरण की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगना जरुरी है । शिक्षा को बिकने वाली वस्तु के रुप में देखने का दृष्टिकोण भारतीय चिंतन के विपरीत है ।
राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि सच्चाई यह है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से ही शिक्षा क्षेत्र को पूरी तरह से उपेक्षित रखा गया । भारत के स्वतंत्र होने 39 साल बाद पहली बार 1986 में शिक्षा नीति बनाई गई देश 39 सालों तक देश की कोई शिक्षा नीति ही नही थी देश इतने सालों तक बिना किसी शिक्षा नीति के चलता रहा । स्वतंत्र होने के बाद जिन लोगों के हाथों में देश की कमान गई वे कभी भी शिक्षा को लेकर गंभीर नही थे । उनकी गलत नीतियों के कारण ही देश में शिक्षा के हालात बदतर हुए, शिक्षा का बाजारीकरण के लिए यही लोग जिम्मेदार है आज भी उन्ही की परिपाटी वाले लोग दिल्ली की गद्दी पर बैठे हैं इन लोगों ने शिक्षा को प्रयोगशाला बना दिया है ।
उन्होने कहा कि अभाविप की हमेशा से मांग रही है कि उच्च शिक्षा के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति बनाई जानी चाहिए जो कि देश में एक ही पाठ्यक्रम के लिए एक जैसा फीस स्ट्रक्चर तय करे । आज एक ही पाठ्यक्रम के लिए छत्तीसगढ़ में अलग फीस ली जाती है मध्यप्रदेश में अलग, महाराष्ट्र और राजस्थान में अलग । यह विसंगति समाप्त होनी चाहिए । फीस स्ट्रक्चर के मामले में पूरे देश में एकरुपता होनी चाहिए । यह तभी हो सकेगा जब इसके लिए केन्द्रीय स्तर पर स्थायी समिति बनाई जाएगी ।
राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि शिक्षा को गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों की पहुंच से दूर करने की कोशिश हो रही है यह एक प्रकार का शोषण है शिक्षा का बाजारीकरण बंद होने से ही यह शोषण रुकेगा और अखिल भारतीय विद्याथी परिषद इसके लिए प्रतिबद्ध है देश भर में अभाविप ने जनजागरण अभियान और आंदोलन छेड़ रखा है अभाविप के इस जनजागरण अभियान और आंदोलन की व्यापक प्रतिक्रिया है लेकिन शिक्षा का बाजारीकरण रोकने के लिए छात्रों और अभिभावकों को भी आगे आना होगा और अभाविप की मुहिम में उसका बढ़ चढ़ कर साथ देना होगा ।
सभा को जिला संयोजक उपकार चंद्राकर, जिला छात्रा प्रमुख मोमिता दास, जिला संगठन मंत्री वरुण यादव, पूर्व जिला संयोजक सुरेन्द्र कौशिक, रथ यात्रा प्रमुख रोहित महेश्वरी व रिंकू सोनी, भिलाई नगर अध्यक्ष सुधीर पाण्डे. थानखम्हरिया ईकाई अध्यक्ष हेमेन्द्र शर्मा ने भी संबोधित किया । राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् से सभा का समापन हुआ ।

Friday, September 10, 2010

महंगाई का दर्द


महंगाई के चलते अब घर चलाने के लिए भी लोन लेने की नौबत आ गई है, कार की जगह अब लोग घर चलाने के लिए लोन मांगेंगे ।

Tuesday, August 24, 2010

विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर सवाल शर्मनाक कृत्य

इटली में जन्म लेने वाली सोनिया गांधी की भारतीय नागरिकता के मुद्दे पर बौखला जाने वाली कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का मानव संसाधन मंत्रालय भारत में ही जन्म लेकर भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन करने वाले शतरंज चैम्पियन विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर सवाल उठा रहा है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है । भारत की महान विभूति के रुप में विख्यात विश्वनाथन आनंद जिन्होने शतरंज के खेल में भारत को नई ऊंचाइयां दी और कई बार शतंरज में भारत को विश्व विजेता होने का गौरव दिलाया ऐसे विश्वनाथन आनंद की भारतीय नागरिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाना केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की संकीर्ण मानसिकता का द्योतक है । भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 3 में जन्म द्वारा नागरिकता को उल्लेखित किया गया है ऐसे में तमिलनाडू में जन्म लेने वाले विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर सवाल ना केवल उनका अपमान है बल्कि उन तमाम भारतीय प्रतिभाओं का अपमान है जो इस देश में जन्म लेकर देश-विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं