Saturday, November 20, 2010

शिक्षा के बाजारीकरण के विरोध में अभाविप का विराट प्रदर्शन


दुर्ग । शिक्षा के बाजारीकरण के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दुर्ग जिले के कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया । आंदोलन में मुख्य रुप से अभाविप के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रशान्त तिवारी, पूर्व राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य व पूर्व छात्र नेता राजेन्द्र पाध्ये, जिला संयोजक उपकार चंद्राकर, जिला छात्रा प्रमुख मोमिता दास, जिला संगठन मंत्री वरुण यादव, पूर्व जिला संयोजक सुरेन्द्र कौशिक विशेष रुप से उपस्थित थे ।
कड़ी धूप में दोपहर 2 बजे जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय के सामने से छात्रों की रैली रवाना हुई । दुर्ग शहर के मुख्य मार्गों से रैली निकली और जिलाधीश कार्यालय के समक्ष रैली का समापन हुआ । समापन में हुए मंचीय कार्यक्रम में वक्ताओं ने शिक्षा के बाजारीकरण के मुद्दे पर केन्द्र सरकार पर जमकर प्रहार किया ।
उपस्थित छात्रों और नागरिकों को संबोधित करते हुए अभाविप के प्रदेश उपाध्यक्ष प्रशान्त तिवारी ने कहा कि व्यापारीकरण के चलते शिक्षा की स्थिति दिन प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है । यह आने वाले समय के लिए अच्छा संकेत नही है, इसलिए अभाविप ने देश भर में शिक्षा के बाजारीकरण के विरोध में आवाज उठाने का निर्णय लिया है ।

अभाविप के पूर्व राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि शिक्षा का बाजारीकरण देश की एक बड़ी समस्या बन चुका है, आज शिक्षा माफियाओं के चंगुल में है । गरीब छात्रों से शिक्षा दूर होती जा रही है । निजीकरण के नाम पर शिक्षा का बाजारीकरण किया जा रहा है । शिक्षा के केन्द्र को मंदिर की उपमा दी जाती है लेकिन शिक्षा माफियाओं द्वारा इस मंदिरों को दुकान और विद्यार्थियों को ग्राहक बना दिया गया है । प्रायवेट शिक्षा संस्थान निरंकुश होकर मनमानेपूर्ण ढंग से फीस और अन्य मदों के नाम पर छात्रों से बेतहाशा पैसा वसूल रहे हैं इन निजी शिक्षा संस्थानों के लिए शिक्षा सेवा का नही बल्कि व्यापार का माध्यम बन चुकी है । इंजिनियरिंग और मेडिकल सहित तमाम पाठ्यक्रमों की सीटें इन निजी संस्थानों द्वारा मनमाने दामों पर बेची जा रही है, गरीब और मध्यम वर्ग का प्रतिभावान छात्र आज डाक्टर और इंजिनियर बनना तो दूर की बात है डॉक्टर और इंजिनियर बनने का सपना भी नही देख सकता है । शिक्षा के बाजारीकरण की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगना जरुरी है । शिक्षा को बिकने वाली वस्तु के रुप में देखने का दृष्टिकोण भारतीय चिंतन के विपरीत है ।
राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि सच्चाई यह है कि देश के स्वतंत्र होने के बाद से ही शिक्षा क्षेत्र को पूरी तरह से उपेक्षित रखा गया । भारत के स्वतंत्र होने 39 साल बाद पहली बार 1986 में शिक्षा नीति बनाई गई देश 39 सालों तक देश की कोई शिक्षा नीति ही नही थी देश इतने सालों तक बिना किसी शिक्षा नीति के चलता रहा । स्वतंत्र होने के बाद जिन लोगों के हाथों में देश की कमान गई वे कभी भी शिक्षा को लेकर गंभीर नही थे । उनकी गलत नीतियों के कारण ही देश में शिक्षा के हालात बदतर हुए, शिक्षा का बाजारीकरण के लिए यही लोग जिम्मेदार है आज भी उन्ही की परिपाटी वाले लोग दिल्ली की गद्दी पर बैठे हैं इन लोगों ने शिक्षा को प्रयोगशाला बना दिया है ।
उन्होने कहा कि अभाविप की हमेशा से मांग रही है कि उच्च शिक्षा के लिए केन्द्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति बनाई जानी चाहिए जो कि देश में एक ही पाठ्यक्रम के लिए एक जैसा फीस स्ट्रक्चर तय करे । आज एक ही पाठ्यक्रम के लिए छत्तीसगढ़ में अलग फीस ली जाती है मध्यप्रदेश में अलग, महाराष्ट्र और राजस्थान में अलग । यह विसंगति समाप्त होनी चाहिए । फीस स्ट्रक्चर के मामले में पूरे देश में एकरुपता होनी चाहिए । यह तभी हो सकेगा जब इसके लिए केन्द्रीय स्तर पर स्थायी समिति बनाई जाएगी ।
राजेन्द्र पाध्ये ने कहा कि शिक्षा को गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों की पहुंच से दूर करने की कोशिश हो रही है यह एक प्रकार का शोषण है शिक्षा का बाजारीकरण बंद होने से ही यह शोषण रुकेगा और अखिल भारतीय विद्याथी परिषद इसके लिए प्रतिबद्ध है देश भर में अभाविप ने जनजागरण अभियान और आंदोलन छेड़ रखा है अभाविप के इस जनजागरण अभियान और आंदोलन की व्यापक प्रतिक्रिया है लेकिन शिक्षा का बाजारीकरण रोकने के लिए छात्रों और अभिभावकों को भी आगे आना होगा और अभाविप की मुहिम में उसका बढ़ चढ़ कर साथ देना होगा ।
सभा को जिला संयोजक उपकार चंद्राकर, जिला छात्रा प्रमुख मोमिता दास, जिला संगठन मंत्री वरुण यादव, पूर्व जिला संयोजक सुरेन्द्र कौशिक, रथ यात्रा प्रमुख रोहित महेश्वरी व रिंकू सोनी, भिलाई नगर अध्यक्ष सुधीर पाण्डे. थानखम्हरिया ईकाई अध्यक्ष हेमेन्द्र शर्मा ने भी संबोधित किया । राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् से सभा का समापन हुआ ।

Friday, September 10, 2010

महंगाई का दर्द


महंगाई के चलते अब घर चलाने के लिए भी लोन लेने की नौबत आ गई है, कार की जगह अब लोग घर चलाने के लिए लोन मांगेंगे ।

Tuesday, August 24, 2010

विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर सवाल शर्मनाक कृत्य

इटली में जन्म लेने वाली सोनिया गांधी की भारतीय नागरिकता के मुद्दे पर बौखला जाने वाली कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का मानव संसाधन मंत्रालय भारत में ही जन्म लेकर भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन करने वाले शतरंज चैम्पियन विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर सवाल उठा रहा है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है । भारत की महान विभूति के रुप में विख्यात विश्वनाथन आनंद जिन्होने शतरंज के खेल में भारत को नई ऊंचाइयां दी और कई बार शतंरज में भारत को विश्व विजेता होने का गौरव दिलाया ऐसे विश्वनाथन आनंद की भारतीय नागरिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाना केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की संकीर्ण मानसिकता का द्योतक है । भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 3 में जन्म द्वारा नागरिकता को उल्लेखित किया गया है ऐसे में तमिलनाडू में जन्म लेने वाले विश्वनाथन आनंद की नागरिकता पर सवाल ना केवल उनका अपमान है बल्कि उन तमाम भारतीय प्रतिभाओं का अपमान है जो इस देश में जन्म लेकर देश-विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं

Sunday, July 25, 2010

कारगिल विजय :: भारतीय सेना के अदम्य साहस, संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक


26 जुलाई - कारगिल विजय की 11 वीं वर्षगांठ पर विशेष

कारगिल युद्ध आजाद भारत के इतिहास में छद्म वेश में लड़ा जाने वाला पहला सीमाई युद्ध था साथ ही यह एक ऐसा युद्ध था जो भारतीय सशस्त्र बलों के इतिहास में सबसे अधिक वाले ऊंचाई वाले युद्धक्षेत्र में लड़ा और जीता गया । कारगिल के जिस इलाके में युद्ध छेड़ा गया था वहां का तापमान -15 डिग्री था, हड्डियों तक को जमा देने वाली कठोर ठंड में भारत के जवानों ने शानदार लड़ाई लड़ी । भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस, संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत अपना लोहा मनवाया कि वे हर परिस्थिति में युद्ध करने और देश की रक्षा करने में सक्षम है । 74 दिनों तक चलने वाला यह युद्ध अपने आप में एक जटिल युद्ध था जिसे पाकिस्तान के प्रशिक्षित सैनिक घुसपैठियों के वेश में लड़ रहे थे । घुसपैठियों द्वारा नियंत्रण रेखा पर 150 किलोमीटर की भारतीय सीमा के साथ साथ 16000-18000 फीट की उंचाई पर पहुंचकर नीचे श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर गोलीबारी की जा रही थी । इसे पाकिस्तान द्वारा छेड़ा गया चौथा युद्ध कहना उचित होगा ।
अप्रैल 1999 में तात्कालीन केन्द्र सरकार के 1 वोट से संसद में विश्वास मत हार जाने के बाद देश के सामने असमय मध्यावधि चुनाव में जाने का रास्ता खुल चुका था । ऐसे समय में मई 1999 में पाकिस्तान की ओर से कारगिल क्षेत्र में हो रही भारी घुसपैठ और भारतीय इलाकों पर कब्जा जमाने की हकीकत सामने आई । कार्यकारी सरकार ने इस हमले से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई । तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने युद्ध के दौरान जबरदस्त आत्मविश्वास और उत्कृष्ठ नेतृत्व का परिचय दिया । भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के नापाक इरादों को नेतस्नाबूद के लिए आपरेशन विजय शुरु किया गया ।
पाकिस्तान द्वारा किया गया कारगिल हमला अप्रत्याशित था प्रत्येक वर्ष ठंड के मौसम में अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया के तहत अत्यधिक कठोर ठंड वाले इलाकों में बनी चौकियों को खाली करने की परम्परा दोनों ही देशों की ओर से काफी लम्बे समय से चली आ रही थी, इस दौरान अपवादस्वरुप गश्त और हवाई निरीक्षण ही हुआ करता था मगर 1999 में पाकिस्तानी सेना ने इस सामान्य प्रक्रिया को ही हमले के लिए सुनहरा अवसर माना, पाक सेना कुटिल चाल चलते हुए तय समय से काफी पहले ही अपनी चौकियों पर आ गई और खाली पड़ी भारतीय चौकियों पर भी कब्जा करना शुरु कर दिया ।
इस कठिन लड़ाई में दुश्मन जहां हजारों फीट ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर मोर्चा जमाकर बैठता था जिसकी वजह से नीचे तैनात भारतीय सैनिक उसके लिए आसान निशाना होते थे इस प्रकार पाकिस्तानी घुसपैठियों की स्थिति मजबूत थी । भारतीय सैनिकों ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में यह युद्ध लड़ा था । भारतीय सेना ने यह दिखा दिया कि चाहे जितनी भी कठिन और विपरीत परिस्थितियां हो, दुश्मन उसके सामने टिक नही सकता ।
आजाद भारत पहली बार ऐसा हुआ था जब किसी सरकार ने शहीदों का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने के लिए पार्थिव शरीर को उनके गांव या कस्बे तक ले जाने की अनुमति दी थी । यह एक सराहनीय कदम था अटल सरकार के इस कदम से देशभर के लोगों में देशभक्ति की जबदस्त भावना जागृत हुई क्योंकि कारगिल युद्ध में शहीद जवान देश के अलग-अलग हिस्सों और राज्यों से ताल्लुक रखते थे किसी जवान के पार्थिव शरीर के गांव या कस्बे में पहुंचने पर वहां के लोगों के मन में देशभक्ति की भावना मजबूत होती थी । जिन रास्तों से जवानों का पार्थिव शरीर ले जाया गया उन रास्तों में भी देश की जनता सड़कों किनारे खड़े होकर सलामी दी ।
कारगिल विजय के तीन महिने बाद आए लोकसभा चुनाव परिणाम में एनडीए को मिले बहुमत के पीछे के कारणों में से एक कारण कारगिल युद्ध में अटल सरकार की सशक्त भूमिका भी रही है । कारगिल युद्ध की विजय के 11 वर्ष पूरे हो रहे हैं । इस युद्ध में मिली शिकस्त के बाद पाकिस्तान ने दोबारा इस तरह का दु:साहस करने की हिमाकत नही की । कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को मिला करारा जवाब उसे लम्बे समय तक याद रहेगा इस युद्ध से ही अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में एक हमलावर देश के रुप में पाकिस्तान की पहचान बनी है । कारगिल विजय को भारतीय सेना के शानदार प्रदर्शन के साथ साथ भारत के स्वाभिमान और मनोबल बढ़ाने वाली विजय के रुप में भी याद किया जाता है ।