Friday, March 4, 2011

देश के सत्ताधीशों को मनमानी करने का हक नही है

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीवीसी के पद पर पी जे थामस की नियुक्ति को अवैध घोषित करने से केन्द्र की कांग्रेसनीत सरकार की गतिविधियों पर प्रश्न चिन्ह लग गया है, लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिन पर गौर करने से ये बात साफ होती जा रही है कि मनमोहन सरकार की गतिविधियां भ्रष्टाचार को हतोत्साहित करने की बजाय पोषित करने वाली है । सीवीसी पद के लिए न्यायालयीन प्रकरण के दौरान भी केन्द्र सरकार ने अपने अर्टानी जनरल के माध्यम से शपथपत्र देकर न केवल नियुक्ति को जायज ठहराया बल्कि पी जे थामस को क्लीन चिट देते हुए उसे निष्कलंक और उत्कृष्ठ अधिकारी तक कहने से सरकार पीछे नही हटी ।
बहरहाल इस मामले में अब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय से बनी परिस्थितियों के बाद केन्द्र सरकार पूरी तरह से कटघरे में खड़ी हो गई है । केन्द्रीय सर्तकर्ता आयुक्त के पद की नियुक्ति हेतु बनी चयन समिति में सदस्य के रुप में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री पी चिदम्बरम और नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज शामिल थे । चयन के लिए हो रही बैठक के दौरान पी जे थामस के नाम पर नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज द्वारा आपत्ति के साथ ही विरोध भी दर्ज कराने के बावजूद मनमोहन सिंह और पी चिदम्बरम ने अपनी अपनी सहमति के आधार पर बहुमत का हवाला देते हुए नियुक्ति पर मुहर लगाई, आपत्ति और विरोध को दरकिनार करके नियुक्ति किये जाने से साफ होता है कि सहमति देने वाले दोनों ही सदस्य पी जे थामस को ही सीवीसी बनाने के लिए मानसिक रुप से तैयार होकर बैठक में आए थे ।
भ्रष्टाचार के मामलों की निगरानी के लिए बनाए गए सीवीसी जैसे पद के चयन के लिए बनी समिति में नेता प्रतिपक्ष को भी रखे जाने के पीछे संविधान में छिपी मूल भावना लोकतंत्र को मजबूत करने की ही है और दूसरा पहलू यह भी है कि विपक्ष की सार्थक भूमिका केवल सरकार का विरोध करना ही नही वरन् उसके गलत निर्णयों पर उसे सतर्क करना भी है जिसमें नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने पूरी तरह से अपनी भूमिका का निर्वहन किया लेकिन सरकार में बैठे दोनों ही सदस्यों ने इस विरोध को सकारात्मक रुप में न लेकर सिर्फ विपक्षी दल के नेता का औपचारिक विरोध मानकर बहुमत का हवाला देते हुए दागी व्यक्ति की नियुक्ति करके लोकतंात्रिक व्यवस्था का अपमान ही किया ।
सर्वोच्च न्यायालय में चले पूरे मामले के दौरान तमाम नौकरशाहों का प्रतिनिधित्व करते हुए पी जे थामस पदलोलुपता का एक ज्वलंत उदाहरण भी पेश कर गए । अपने पद पर काबिज रहने के लिए न्यायालय के समक्ष जितने भी प्रपंच कर सकते थे वे करते रहे कभी स्वयं को असंदिग्ध ईमानदार कहते हुए निर्लज्जता के साथ बचाव किया तो कभी देश के दागी सांसदों और विधायकों का हवाला देते हुए स्वयं को सीवीसी के पद के उपयुक्त बताया ।
सीवीसी जैसी देश की सर्वोच्च भ्रष्टाचाररोधी संस्था की गरीमा को समाप्त कर उसे खोखला करने की सत्ताधीशों की हरकत न्यायपालिका को पसंद नही आई और सर्तक न्यायपालिका ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए यह जता दिया कि देश के सत्ताधीशों को मनमानी करने का हक नही है ।